राजस्थान कांग्रेस में एक बार फिर ‘गहलोत बनाम पायलट’ की जंग तेज होती दिख रही है। अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन का ऐलान करके पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने साफ कर दिया है कि विधानसभा चुनाव से पहले वह आर-पार की लड़ाई लड़ने जा रहे हैं। 2020 की बगावत के बाद लंबे समय तक चुप रहे पायलट का सब्र अब टूटता नजर आ रहा है। हालांकि, अपनी ही सरकार के खिलाफ उनके तेवर ने पार्टी हाईकमान को नाराज कर दिया है। ऐसे में उनके लिए आगे की राह बेहद मुश्किल मानी जा रही है। सुलह की संभावनाएं बेहद कम हैं और सवाल यह भी उठ रहा कि क्या विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में दो फाड़ हो जाएगी?
टूट चुका सब्र?
बताया जाता है कि तब राहुल और प्रियंका ने उनसे भविष्य के लिए कुछ वादे किए थे, जिन्हें पूरा होने का इंतजार पायलट को अब तक रहा। यही वजह है कि वह लंबे समय तक चुप रहे और गहलोत की ओर से गद्दार, निकम्मा और कोरोना तक कहे जाने पर भी उन्होंने कभी आपा नहीं खोया। खुद राहुल गांधी ने पायलट के ‘सब्र’ की सार्वजनिक मंच से तारीफ की थी। हालांकि, पिछले दिनों जिस तरह गहलोत ने राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद कुर्बान करके मुख्यमंत्री बने रहने का फैसला किया उसके बाद यह साफ हो गया था कि पायलट के लिए ‘जगह’ खाली नहीं है। पायलट को उम्मीद थी कि जिस तरह विधायक दल की बैठक बुलाए जाने के हाईकमान के फैसले को नकारा गया उसके बाद गहलोत पर ऐक्शन हो सकता है। लेकिन राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले गहलोत एक बार फिर नेतृत्व का भरोसा जीतने में कामयाब रहे हैं।
क्या पायलट के पास नहीं बचा कोई रास्ता?
मौजूदा टकराव को देखते हुए एक बार फिर पायलट के भविष्य को लेकर अटकलें लगने लगी हैं। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है गहलोत अपने रुख पर कायम हैं। 2020 की बगावत से आहत गहलोत पायलट से सुलह के मूड में नहीं हैं। दूसरी तरफ पायलट भी अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता की स्थिति से बाहर निकलना चाहते हैं। ऐसे में चुनाव से पहले वह कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं। यह भी कहा जा रहा है कि चुनाव से पहले उन्हें पार्टी छोड़ने को भी मजबूर होना पड़ सकता है।