जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट(Rajasthan High Court) ने बीकानेर के एक पीटीआई(PTI) की सजा सस्पेंड करने से इनकार कर दिया। इस पीटीआई को ट्रायल कोर्ट ने दो वर्ष पूर्व अपने संस्थान की एक सत्रह वर्षीय दलित छात्रा के साथ दुष्कर्म(Rape) और आत्महत्या(Sucide) के लिए उकसाने का दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास(Life Term) की सजा सुनाई थी। पीटीआई के साथ इस संस्थान के प्रिंसिपल व वार्डन को भी इस मामले में छह-छह वर्ष की सजा सुनाई गई थी।
पीटीआई की तरफ से सजा सस्पेंड करने की अपील पर न्यायाधीश विजय विश्नोई व न्यायाधीश राजेन्द्र प्रकाश सोनी की खंडपीठ ने दोनों पक्ष की दलील सुनने के बाद अपना फैसला सुनाया।
वर्ष 2016 में एक सत्रह वर्षीय दलित छात्रा बीकानेर स्थित अपने संस्थान की छत पर बनी पानी की टंकी में मृत पाई गई थी। उसके माता-पिता ने आरोप लगाया कि पीटीआई ने उनकी बेटी के साथ दुष्कर्म किया। ट्रायल कोर्ट ने अक्टूबर, 2021 में संस्थान के पीटीआई, प्रिंसिपल और वार्डन को आईपीसी(IPC), पॉक्सो एक्ट और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया। पीटीआई को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, प्रिंसिपल और वार्डन को 6 साल की कैद और जुर्माने की सजा सुनाई गई। आवेदक की ओर से पेश वकील ने कहा कि इस तथ्य को साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री उपलब्ध नहीं है कि उसने मृतक के साथ कोई अपराध किया, जबकि उसे पूरी जानकारी थी कि वह अनुसूचित जाति समुदाय से है। अभियोजन पक्ष के गवाह मृतक के पिता की गवाही केवल सुनी-सुनाई बातों पर आधारित है और आवेदक के खिलाफ किसी भी स्वतंत्र गवाह द्वारा इसकी पुष्टि नहीं की गई।
वकील ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष के अन्य गवाहों ने अभियोजन की कहानी का समर्थन नहीं किया और अपने बयान से मुकर गए। दूसरी ओर, विशेष लोक अभियोजक ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा ठोस और विश्वसनीय सबूत पेश करके आवेदक की भूमिका और मकसद को उचित संदेह से परे स्थापित किया गया। रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि आवेदक ने मृतक के साथ अपराध किया, जबकि उसे पूरी जानकारी थी कि वह अनुसूचित जाति समुदाय से है।
खंडपीठ ने अपने फैसले में पीटीआई को सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को सस्पेंड करने से इनकार करते हुए उसकी याचिका को खारिज कर दिया।

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