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सूरसागर विधानसभा क्षेत्र: लोगों का मर्म समझे बगैर गहलोत प्रत्याशी बदलते रहे, ध्रुवीकरण के दम पर भाजपा मजबूत

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जोधपुर. मुख्यमंत्री(CM) अशोक गहलो(Ashok Gahlot) के गृहनगर जोधपुर में भाजपा का बेहद मजबूत गढ़ बन चुके सूरसागर(Soorsagar) विधानसभा क्षेत्र को ढहा नहीं पा रही है। कांग्रेस(Congress) यहां से लगातार चार चुनाव हार चुकी है। गहलोत इस सीट को जीतने की ललक में हर बार प्रत्याशी बदलती रही, लेकिन यहां के मर्म को समझ नहीं पाए। जबकि भाजपा(BJP) ने वर्ष 2008 से इस सीट के सामान्य होने के बाद अपना प्रत्याशी नहीं बदला। ध्रुवीकरण के दम पर भाजपा हर बार इस सीट पर काबिज होती रही।
इस वर्ष के अंत में होने वाले चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस और खासकर गहलोत के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती सूरसागर का गढ़ जीतने की है। अब देखने वाली बात यह है कि गहलोत इस बार किस पर दांव खेलते है। वहीं भाजपा भी इस बार उम्रदराज हो चुकी जीजी के नाम से प्रसिद्ध विधायक सूर्यकांता व्यास के स्थान पर किसी नए चेहरे की तलाश में है।
अब गहलोत का भी विरोध
जोधपुर जिले की सभी सीटों पर प्रत्याशी चयन गहलोत ही करते आए है। सूरसागर को लेकर सोमवार को आयोजित कांग्रेस की बैठक में गहलोत के खिलाफ पहली बार विरोध के स्वर मुखर हुए। कुछ वरिष्ठ कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने कहा कि टिकट का फैसला सर्वे करने के बाद कार्यकर्ताओं की राय के आधार पर किया जाए न कि गहलोत की ओर से। कुछ कार्यकर्ताओं ने दबी जबान में कहा कि गहलोत ने इस सीट को जीतने के लिए सारे जतन कर लिए, लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही है। ऐसे में इस बार कार्यकर्ताओं के मन की थाह लेकर प्रत्याशी का चयन होना चाहिये।
सूरसागर का गणित
सूरसागर जोधपुर शहर का बाहरी छोर है। शहर के फैलाव के साथ आबाद हुए इस क्षेत्र में किसी एक जाति विशेष का वर्चस्व नहीं है। ग्रामीण क्षेत्र से आकर बड़ी संख्या में लोग इसी क्षेत्र में आबाद हुए। वहीं परिवार बढ़ने के कारण भीतरी शहर के परिवारों का भी यही क्षेत्र नया रहवास बना। एससी एसटी के अलावा माली, ब्राह्मण, सिंधी, मुस्लिम, वैश्य वर्ग, जाट व राजपूत समाज के मतदाताओं की संख्या अधिक है।
ध्रुवीकरण के दम पर भाजपा मजबूत
परिसीमन के बाद से इस सीट पर हुए तीन चुनाव में कांग्रेस ने हर बार नया लेकिन मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारा। जबकि भाजपा ने हमेशा सूर्यकांता के रूप में ब्राह्मण चेहरे पर दांव खेला। कांग्रेस अपने परम्परागत वोट बैंक के दम पर जीत हासिल करना चाहती है, लेकिन भाजपा के ध्रुवीकरण का कोई तोड़ नहीं खोज पा रही है। भाजपा ब्राह्मण चेहरा उतारकर हिन्दू मतदाताओं कोसाधती है और हमेशा सफल रहती है।
सूरसागर का इतिहास
वर्ष 1977 के चुनाव में अस्तित्व में आया सूरसागर विधानसभा क्षेत्र आरक्षित श्रेणी में रहा। इस सीट पर दस चुनाव हुए। उनमें से कांग्रेस ने चार तो भाजपा ने छह बार जीत हासिल की। शुरुआती तीन चुनाव ने बाजी मारी। कांग्रेस को इस सीट पर वर्ष 1998 में प्रदेश में चली कांग्रेस लहर के दौरान जीत मिली थी। इसके बाद से पार्टी को यहां से जीत की तलाश है।
सूरसागर विधानसभा क्षेत्र का इतिहास
पहला विधानसभा चुनाव 1977
1977 के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से नरपत राम बरवाड़ चुनावी मैदान में उतारा। वहीं जनता पार्टी की ओर से मोहनलाल मैदान में उतरे। इस चुनाव में मोहनलाल के पक्ष में 16,928 वोट पड़े तो वहीं नरपत राम बरवाड़ को 18,411 मतदाताओं का समर्थन मिला और वह सूरसागर विधानसभा सीट से पहले विधायक चुने गए।
दूसरा विधानसभा चुनाव 1980
1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस आई की ओर से नरपत राम बरवाड़ फिर एक बार चुनावी मैदान में थे तो वहीं भाजपा की ओर से फिर से मोहन मेघवाल को प्रत्याशी बनाया गया। इस चुनाव के नतीजे भी 1977 के नतीजों की तरह ही रहे। जहां मोहन मेघवाल के पक्ष में 17,722 वोट पड़े तो वहीं नरपत राम को 24,317 मतों के साथ जीत हासिल हुई।
तीसरा विधानसभा चुनाव 1985
1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने गहलोत के करीबी माने जाने वाले नरपत राम बरवड़ पर एक बार फिर भरोसा जताया। भाजपा ने मोहन मेघवाल को चुनावी मैदान में उतारा। नरपत राम को 36,234 लोगों ने वोट दिया और तीसरी बार सूरसागर से विधायक चुना।
चुनाव चौथा विधानसभा चुनाव 1990
1990 के विधानसभा चुनाव आते-आते तस्वीर थोड़ी बदल चुकी थी। कांग्रेस का विश्वास नरपत राम के साथ था तो वहीं भाजपा ने मोहन मेघवाल को चुनावी मैदान में उतारा।भाजपा ने पहली बार इस सीट पर जीत का स्वाद चखा। मोहन मेघवाल 59,618 वोटों से जीतकर राजस्थान विधानसभा पहुंचे.
पांचवा विधानसभा चुनाव 1993
इस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों को बरकरार रखा और कांग्रेस की ओर से नरपत राम एक बार फिर किस्मत आजमाने उतरे तो वहीं भाजपा की तरफ मोहन मेघवाल ने चुनावी ताल ठोकी। इस चुनाव में भी 3,500 हजार मतों के अंतर से मोहन मेघवाल की जीत हुई और नरपत राम को एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा.
छठा विधानसभा चुनाव 1998
इस चुनाव में कांग्रेस को आखिरकार अपनी रणनीति बदलनी पड़ी।. कांग्रेस ने नरपत राम की जगह इस बार भंवर लाल बलाई पर दांव खेला जबकि भाजपा ने लिए पिछले दो चुनावों से जीत हासिल करने वाले मोहन मेघवाल भरोसा बरकरार रखा। इस चुनाव में कांग्रेस की रणनीति सफल हुई। भवंरलाल 2 चुनाव बाद फिर से कांग्रेस कोजीत का स्वाद चखाने में कामयाब रहे।
सातवां विधानसभा चुनाव 2003
2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने फिर से मोहन मेघवाल को ही चुनावी मैदान में उतारा। कांग्रेस ने एक बार फिर भंवर बलाई ल पर ही दाव खेलना ठीक समझा। भाजपा के मोहन मेघवाल अपनी पिछली हार का बदला लेने में कामयाब हुए और जीत हासिल की।
आठवां विधानसभा चुनाव 2008
इस चुनाव में सूरसागर विधानसभा सीट का समीकरण बदल गया। शुरू से आरक्षित (SC) रहने वाली यह सीट अब सामान्य वर्ग की हो गई थी। लिहाजा ऐसे में भाजपा और कांग्रेस ने नए चेहरों की तलाश की। भाजपा ने पार्टी की सीनियर लीडर में से एक सूर्यकांता व्यास को सुरसागर से चुनावी मैदान में उतारा तो वहीं कांग्रेस सियासी समीकरण साधने के लिए सईद अंसारी को लेकर आई। हालांकि इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार सईद अंसारी के पक्ष में 43657 वोट पड़े. सूर्यकांता व्यास को 49154 मतदाताओं ने अपना मत देकर जिताया।
9वां विधानसभा चुनाव 2013
इस चुनाव में भाजपा ने फिर से पार्टी की वरिष्ठ नेता सूर्यकांता व्यास को चुनावी जंग हो उतारा तो कांग्रेस ने प्रत्याशी बदलते हुए सईद अंसारी की जगह जैफू खान पर भरोसा जताया। इस चुनाव में सूर्यकांता व्यास एकतरफा अंदाज में जीत हासिल की।
दसवां विधानसभा चुनाव 2018
2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने एक बार फिर जीत की गारंटी बन चुकी सूर्यकांता व्यास को ही टिकट दिया। कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदली और ध्रुवीकरण को ध्यान में रखते हुए प्रोफेसर अयूब खान को टिकट दिया। प्रोफेसर अयूब खान नॉन पॉलिटिकल बैकग्राउंड आते थे, लेकिन उनके प्रोफेशनल चेहरे को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने उन पर दाव खेला। इस चुनाव में जहां भाजपा प्रत्याशी को कुछ स्थानों पर विरोध के चलते नुकसान होने का खतरा था तो वहीं कांग्रेस के लिए चौपासनी हाउसिंग बोर्ड क्षेत्र चुनौती बना हुआ था। हालांकि जब चुनाव नतीजे आए एक बार फिर सूर्यकांता व्यास ही सूरसागर की प्रतिनिधि चुनी गई। इस चुनाव में अयूब खान के पक्ष में 81,122 वोट पड़े तो वहीं सूर्यकांता व्यास को 86,222 मतदाताओं ने समर्थन दिया और तीसरी बार अपना प्रतिनिधि चुना।

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