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रामधाम खेड़ापा: आस्था का अद्भुत स्थल, देश के कई राज्यों में भी शाखाएं

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जोधपुर/भोपालगढ़। भोपालगढ़ विधानसभा क्षेत्र के उपखंड बावड़ी के खेड़ापा गांव में स्थित रामधाम खेड़ापा का मंदिर रामस्नेही संप्रदाय के रामदासजी महाराज की पावन तपोभूमि है जो जोधपुर से 60 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग 62 पर स्थित खेड़ापा कस्बे में है।

रामधाम की स्थापना-

रामधाम खेड़ापा के ध्यानदास रामस्नेही के अनुसार रामस्नेही संप्रदायाचार्य पीठ का रामधाम खेड़ापा आचार्यत्व और ग्रामीणों की आस्था का अद्भुत धार्मिक केंद्र है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात सहित कई जगहों पर इस पीठ की शाखाएँ हैं। विक्रम संवत 1834 में इसकी स्थापना हुई। इस रामधाम के प्रथम आचार्य रामदास महाराज से अब तक नौ आचार्य इस मंदिर की पीठ पर पदासीन हुए हैं। इस संप्रदाय के लाखो से भी अधिक भक्त हैं। रामधाम खेड़ापा के नवम आचार्य पुरुषोत्तमदास महाराज के इस पीठ पर पदासीन होने के पचास वर्ष पूर्ण करने के उपलक्ष्य में आयोजित अमृत महोत्सव में संत गोविंदराम शास्त्री को दसवें आचार्य के रूप में उनका उत्तराधिकारी बनाया गया।

भारतवर्ष में 88 रामद्वारे-

रामस्नेही संप्रदाय की राजस्थान में मुख्य चार पीठें रेण (नागौर), शाहपुरा (भीलवाड़ा), सींथल (बीकानेर) व खेड़ापा (जोधपुर) में है। संपूर्ण भारत में 25 लाख से अधिक लोग रामस्नेही संप्रदाय से जुड़े हुए है।

रामधाम खेड़ापा का परिचय–

रामधाम खेड़ापा के प्रथम आचार्य रामदासजी महाराज का जन्म विक्रम संवत 1783 को फाल्गुन कृष्ण पक्ष की 13 शिवरात्रि को भीकमकोर (जोधपुर) में हुआ। रामदासजी महाराज बाल्यकाल से ही आध्यात्मिक खोज में लग जाने के कारण विक्रम संवत 1809 के वैशाख शुक्ल ग्यारस के दिन रामस्नेही संप्रदाय के सींथल पीठ पर विराजित पीठाचार्य हरिरामदास महाराज से दीक्षा ग्रहण कर ली। दीक्षापरांत उन्होंने अपने ननिहाल के पास स्थित ग्राम मैलाणा में गुंदी के पेड़ के नीचे रहकर सात वर्ष तक कठोर तपस्या की। कुछ समय तक अन्य राज्यों मे भ्रमण करने के बाद लगभग चार वर्षों तक आसोप में भजन तपस्या की। संवत 1834 में गुरु आज्ञा के बाद खेड़ापा में रामधाम की स्थापना कर देशभर में राम भक्ति का प्रचार प्रसार करने लग गए। वर्तमान में रामधाम खेड़ापा एक तीर्थस्थल का रूप ले चुका है। रामधाम खेड़ापा के निज मंदिर में सुबह शाम सभी संत महात्माओं की मौजूदगी में आरती की जाती है। रामधाम की उत्तर दिशा में अड़सठ तीर्थ का मंदिर स्थित है व पूर्व दिशा में पहाड़ी पर दयालु गुफा स्थित है। जहाँ पर भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है। रामधाम खेड़ापा में गौ माताओं की सेवा के लिए एक गौशाला का भी संचालन हो रहा है। रामधाम खेड़ापा में प्रतिवर्ष होली के दिन शाम को फूलडोल मेले का विशाल आयोजन होता है जिसमें कई साधु, संत व महात्मा हजारों की तादाद में मौजूद रामस्नेही भक्तों को प्रवचन देते है।

प्रथम आचार्य रामदास महाराज–

विक्रमसंवत 1809 वैशाख शुक्ल ग्यारस के दिन रामस्नेही संप्रदाय के सींथल पीठाचार्य हरिरामदास महाराज से रामस्नेही की दीक्षा ग्रहण की। संवत 1834 में यह रामधाम बनाया। 46 वर्ष तक वे आचार्य पद पर रहे।

द्वितीय आचार्य दयालुदास महाराज

विक्रमसंवत 1855 से 1885 तक 30 वर्ष तर आचार्य रहे। उन्होंने 36 हजार श्लोक मेध्या अनुभव वाणी का सृजन किया है।

तृतीय आचार्य पूरणदास महाराज

विक्रमसंवत 1885 से 1892 तक 7 वर्ष तक आचार्य रहे। उनकी अनुभव वाणी 1500 श्लोक मेध्या परिमित है।

चतुर्थ आचार्य अर्जुनदास महाराज

विक्रमसंवत 1892 से 1950 तक 59 वर्ष तक आचार्य रहे। वे 15 वर्ष की उम्र में ही आचार्य पद पर आसीन हुए।

पंचम आचार्य हरलाल दास महाराज

विक्रमसंवत 1950 से 1968 तक लगभग 18 वर्ष तक आचार्य पद पर रहे।

षष्ठम आचार्य लालदास महाराज

विक्रमसंवत 1968 से 1982 तक लगभग 14 वर्ष तक आचार्य पद पर रहे।

सप्तम आचार्य केवलराम महाराज

विक्रमसंवत 1982 से 2009 तक लगभग 27 वर्ष तक आचार्य पद पर रहे।

अष्टम आचार्य हरिदास महाराज

विक्रमसंवत 2009 से 2022 तक लगभग 12 वर्ष तक आचार्य पद पर बने रहने के साथ ही वे आयुर्वेदाचार्य भी थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में हजारों लोगों के असाध्य रोगों का उपचार भी किया।

वर्तमान आचार्य पुरुषोत्तमदास महाराज

विक्रमसंवत 2022 की चैत्र कृष्ण दशमी को रामस्नेही भक्तों की भावनाओं के अनुरूप 23 वर्ष की उम्र में उनको नवम आचार्य बनाया गया। उस दिन से लेकर आज तक इस पद से आचार्य पाटगादि, भेख भगवान आचार्य पीठ का पूर्ण मनोनियोग से पूजन अर्चन सम्मान कर रहे हैं।

वर्तमान उत्तराधिकारी गोविंदराम शास्त्री

विक्रमसंवत 2072 को फाल्गुन कृष्ण पक्ष नवमी के दिन रामधाम के नवम व वर्तमान आचार्य पुरुषोत्तमदासजी महाराज द्वारा इनको उत्तराधिकारी घोषित किया गया।

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