नारद जोधपुर। प्रदेश में इन दिनों वसुंधरा राजे के समर्थकों की बांछें खिली हुई है। जोश से लबरेज होकर वे एक बार फिर चुनावी तैयारियों में जुटने का मानस बना रहे है। पार्टी नेतृत्व की तरफ से लंबे समय से हाशिये पर चल रही वसुंधरा को दिल्ली में फिर से तव्वजो मिलने के बाद प्रदेश में भाजपा में राजनीतिक समीकरण बदले-बदले नजर आ रहे है। राजस्थान में भाजपा के चुनाव अभियान की पूरी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संभाल रखी है। गत सप्ताह मोदी ने दिल्ली में राजस्थान के सांसदों की बैठक ली थी। इस बैठक में सांसद नहीं होने के बावजूद वसुंधरा को मोदी ने विशेष रूप से आमंत्रित किया था। इस बैठक से मिले संकेतों ने अब तक अपेक्षाकृत शांत बैठे वसुंधरा समर्थकों में नई ऊर्जा का संचार कर दिया है।
लंबे समय से नहीं मिली तव्वजो
पांच-पांच बार सांसद व विधायक के अलावा दो बार प्रदेश की बागडोर संभाल चुकी वसुंधरा राजे राजस्थान में भाजपा की एकमात्र ऐसी नेता है जिनके कार्यकर्ताओं से सीधा संपर्क रहा। साथ ही वे ही प्रदेश में सबसे अधिक भीड़ जुटाने वाली नेता भी रही है। लोगों से सीधा संवाद कायम करने में वसुंधरा का कोई सानी नहीं है। गत विधानसभा चुनाव में राजस्थान में मिली हार के बाद से पार्टी नेतृत्व और वसुंधरा के बीच दूरिया बढ़ती गई। पार्टी नेतृत्व की तरफ से वसुंधरा को कोई तव्वजो नहीं मिली। इसके बाद से वसुंधरा ने भी अपने आप को बहुत सीमित कर लिया।
ऊहापोह में थे समर्थक
वसुंधरा राजे के आइसोलेट होने से उनके समर्थक भी ऊहापोह में थे कि वे किसका साथ दे? सभी को उम्मीद थी कि वसुंधरा बाउंस बैक अवश्य करेगी। लेकिन मोदी के राजस्थान की बागडोर अपने हाथ में लेने के बाद यह मैसेज गया कि इस बार वसुंधरा को तव्वजों नहीं मिलेगी। कुछ दिन पूर्व मोदी ने राजस्थान विधानसभा चुनाव की तैयारियों के परिपेक्ष्य में दिल्ली में सांसदों की एक बैठक ली। इस बैठक में राजस्थान से सांसद नहीं होने के बावजूद जोधपुर निवासी रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और वसुंधरा राजे की उपस्थिति चौंकाने वाली रही। वसुंधरा को तव्वजों मिलने के संकेत मात्र से उनके समर्थकों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। अब तक शांत बैठे उनके समर्थक एक बार फिर से सक्रिय हो चुके है।
इस कारण मिली तव्वजो
कर्नाटक में भाजपा बीएस येदियुरप्पा को साइड लाइन करने का खामियाजा भुगत चुकी है। पार्टी वहीं गलती राजस्थान में फिर से दोहराना नहीं चाहती है। वहीं दूरदराज से लेकर शहरों में पार्टी कार्यकर्ताओं पर वसुंधरा की मजबूत पकड़ और भीड़ जुटाने की क्षमता को देखते हुए पार्टी नेतृत्व के तेवर नरम पड़ने शुरू हो गए। अगले वर्ष प्रस्तावित लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा राजस्थान को हर हाल में जीतना चाहेगी। ताकि देश में एक पॉजिटिव संदेश दिया जा सके। वहीं पार्टी की ओर से करवाए गए सर्वे रिपोर्टों में भी वसुंधरा का बार-बार उल्लेख किया गया। ऐसे में पार्टी नेतृत्व के लिए वसुंधरा राजे को दरकिनार करना मुश्किल हो गया। इन कारणों से वसुंधरा का मुख्य धारा की राजनीति में वापसी हो गई।