जोधपुर। जोधपुर प्रदूषण निवारण ट्रस्ट JPNT में करोड़ों के घोटाले की परत दर परत खुल रही है। पद के दुरुपयोग और जीएसटी की चोरी जैसे मामले तो है ही, तत्कालीन मैनेजिंग ट्रस्टी जी.के. गर्ग की चिंदी चोरी भी सामने आई है। पता चला है कि गर्ग ने तीन हजार लीटर पानी की टंकी ट्रस्ट के नाम पर खरीदी और उसे अपने घर पर लगवा दिया। घर से पुरानी टूटी हुई टंकी ट्रस्ट में भेजी गई, जिसे मरम्मत कर लगाया गया। जांच कमेटी के पास इस बारे में लिखित बयान भी मौजूद है। यही नहीं, ट्रस्ट से सालावास नाले में डालने के लिए 80 हजार रुपए का खर्चा उठाया गया, जबकि मिट्टी ट्रस्टी की रीको बोरानाडा स्थित फैक्ट्री में डाली गई।
जेपीएनटी में घोटालों को लेकर जब जांच कमेटी ने दस्तावेज जुटाने के साथ लिखित बयान लिए तो एक बयान जाकिर हुसैन का भी दर्ज हुआ। उसने बताया कि वह 15 साल से यहां कार्यरत है। क्वालिटी कारपोरेशन से एक तीन हजार लीटर की टंकी 27 जुलाई 2022 को खरीदी गई थी। फर्म से टंकी की सप्लाई सीधे गर्ग साहब के घर पर हुई। उसकी जगह पुरानी टंकी यहां भेजी गई, जिस पर कारी लगाकर मरम्मत करने के बाद सिंघवी साहब के प्लांट पर भेजी गई। इधर, ट्रस्ट की ओर से सालावास नाले में मिट्टी डालने के लिए 80 हजार रुपए का भुगतान दिलीप के नाम से उठा। मिट्टी डालने वाले ने 20 ट्रीप किए थे। ट्रक मालिक का कहना है कि यह मिट्टी नाले की जगह रीको बोरानाडा वाली ट्रस्टी की फैक्ट्री में डाली गई थी।

हेराफेरी की यह बानगी भी देखिए
ट्रस्ट की ओर से 3 जुलाई 2021 को 1.23 लाख रुपए का भुगतान मोहम्मद शौकिन को किया गया। उसकी ओर से न तो कोई बिल पेश हुआ, न उसने ट्रस्ट के लिए कोई काम किया।
जीएसटी की चोरी के खुल सकते हैं मामले
विकास स्टील से दो लाख से ज्यादा का आयरन व स्टील सप्लाई किया गया। कई मर्तबा माल की डिलीवर ई-वे बिल जनरेट होने से पहले ही कर दी गई। कायदे से ई-वे बिल जनरेट कर माल के साथ भेजा जाता है।
कई सप्लायर्स ने एक ही वित्तीय वर्ष में 20 लाख रुपए से ज्यादा माल की आपूर्ति की, लेकिन वे जीएसटी में रजिस्टर्ड ही नहीं थे और ऐसे कई सप्लायर्स को जीएसटी जोड़कर भुगतान किया गया। कांट्रेक्टर श्यामलाल ने तो वित्तीय वर्ष 2020-21 में 22.35 लाख, 2021-22 में 43.83 लाख और 2022-23 में 34.39 लाख का काम किया, बिना जीएसटी रजिस्ट्रेशन करवाए।
चोरी पकड़ी गई तो बिल वापस मंगवा लिया
सितंबर 2022 में वर्धमान इंफो की ओर से बिना किसी कार्य किए 80 हजार रुपए का बिल भुगतान के लिए पेश किया गया। जब घोटालों की जांच शुरू हुई तो फर्म ने बिल वापस मंगवा लिया। इसी फर्म ने 2.52 लाख के बिल दिए थे। जिसमें 27 अर्थिंग पिट्स सप्लाई करना बताया, हकीकत में 12 ही लगे थे।
प्रदूषण मिटाने को हुआ था गठन, खुद ही हो गए दूषित
जोधपुर में टेक्सटाइल उद्योग के बढ़ते कदमों के साथ ही इनसे निकलने वाले दूषित पानी को साफ करने की यहां के उद्यमियों ने ही पहल की। इसी का नतीजा था कि वर्ष 1988 में टेक्सटाइल उद्यमी गजेन्द्र सिंघवी व गणपत सांड के नेतृत्व जोधपुर प्रदूषण निवारण समिति का गठन किया गया। इस ट्रस्ट ने शहर के टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज में आने वाली कपड़ों की प्रत्येक गांठ पर 15 रुपए लेने शुरू किए। बाद में यह राशि बढ़ाकर प्रति गांठ 25 रुपए कर दी गई। ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के लिए वर्ष 1996 में ट्रस्ट को रीको ने सांगरिया में जमीन आवंटित की। तब तक जोधपुर में स्टील इडस्ट्री भी अपने पांव पसार चुकी थी। ऐसे में इससे निकलने वाले तेजाबी पानी को साफ करने की भी जरुरत महसूस की गई। वर्ष 1998 में आवंटित जमीन की रजिस्ट्री कराते समय स्टील उद्योग से जुड़े लोगों को शामिल करते हुए जोधपुर प्रदूषण निवारण ट्रस्ट गठित किया गया। इसके बाद स्टील इंडस्ट्रीज से भी सेस वसूल किया जाने लगा। इस जमीन पर विश्व बैंक के सहयोग से दूषित पानी को साफ कर जोजरी नदी में प्रवाहित करने के लिए सांगरिया में ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित किया गया। इसकी वर्तमान क्षमता 18.5 एमएलडी टेक्सटाइल व 1.5 एमएलडी स्टील इंडस्ट्रीज से निकले पानी को साफ करने की क्षमता है। इस समय मानसून के कारण टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज कमजोर मांग के चलते पूरी क्षमता से संचालित नहीं हो पा रही है। ऐसे में 8 से 10 एमएलडी पानी ही ट्रीट करना पड़ रहा है। जबकि स्टील इंडस्ट्रीज से पानी भी अपनी क्षमता से कम ही पहुंच रहा है। वर्तमान में इस ट्रस्ट में टेक्सटाइल की 307 व स्टील की 86 इकाइयां रजिस्टर्ड है। दोनों तरह की इंडस्ट्रीज से निकलने वाले प्रति हजार लीटर पानी पर 550 से 650 रुपए प्रदूषण सेस लिया जाता है। वर्तमान में स्टील के लिए राजस्थान स्टेट रिरोलिंग एसोसिएशन व टेक्सटाइल के लिए जोधपुर पॉल्यूशन कंट्रोल एंड रिसर्च फाउंडेशन मिलकर ट्रस्ट का संचालन करती है। इसके लिए मैनेजिंग ट्रस्टी व अन्य सदस्यों का चुनाव होता है। हालांकि अधिकांश बार सर्वसम्मति से इन पदाधिकारियों का चुनाव हो जाता है। वर्तमान में ट्रस्ट के खाते में करीब दो करोड़ रुपए जमा है।
ऐसे होता है खेल
कहने को तो जोधपुर में ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित है, लेकिन पैसा बचाने के लिए कई बार तेजाबी पानी को ट्रीट किए बगैर जोजरी नदी में बहा दिया जाता है। जोधरी नदी में से यह पानी बहता हुआ बाड़मेर-जोधपुर जिले की सीमा पर स्थित कुछ गांवों में फैल जाता है। वहां के खेतों की बंजर हुई जमीन ट्रीटमेंट प्लांट के संचालन की पोल खोल देती है। वहीं भूजल भी प्रदूषित हो चुका है।
एनजीटी लगा चुका है जुर्माना
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल(NGT) ने जोजरी, लूणी और बांडी नदीं में अवैध रूप से इंडस्ट्रीज का प्रदूषित पानी डिस्चार्ज करने पर राजस्थान स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट एंड इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन (रीको) जोधपुर और बाड़मेर पर दो-दो करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया था। एनजीटी ने यह फैसला ग्राम पंचायत अराबा की ओर से दायर याचिका पर सुनाया है। अराबा में जोधपुर का दूषित पानी पहुंचता है। एनजीटी ने राजस्थान राज्य प्रदूषण निवारण मंडल को निर्देश दिया था कि वह इस बात कि मॉनिटरिंग करे कि किसी भी तरह के ट्रीटमेंट प्लांट से पानी ट्रीट हुए बगैर नदीं में नहीं छोड़ा जाए। आदेश में कहा गया कि यदि कोई सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, एफ्यूलेंट ट्रीटमेंट प्लांट और कॉमन एफ्यूलेंट ट्रीटमेंट प्लांट से यदि पूरी तरह से ट्रीट किए बगैर पानी को डिस्चार्ज किया जाता है तो उसे सीज कर दिया जाए। ग्राम पंचायत अराबा की ओर से एनजीटी को बताया गया कि इन नदियों में रोजाना 300 मिलियन लीटर रसायन युक्त पानी छोड़ा जाता है। जोधपुर क्षेत्रीय इंडस्ट्रियल हब है। यहां पर बड़ी संख्या में टेक्सटाइल के डाई और प्रिंटिंग का कार्य होता है। साथ ही बड़ी संख्या में स्टील री रोलिंग मिल्स भी है। इनसे केमिकल युक्त पानी निकलता है। इस पानी को ट्रीट किए बगैर जोजरी नदी में बहा दिया जाता है।