जोधपुर। खासतौर पर रेलवे कर्मचारियों के लिए खोला गया मंडल चिकित्सालय की व्यवस्थाओं को लेकर आए दिन मरीजों की शिकायतें सामने आती हैं। इस बार तो एक चिकित्सक की मनमानी को लेकर मरीज के परिजनों व रेलवे कर्मचारियों का गुस्सा फूट पड़ा। ट्रेकमैन की पत्नी के सिजेरियन डिलीवरी के अगले ही दिन डिस्चॉर्ज देने पर रेलकर्मी भड़क गए। आरोप लगाया कि जच्चा व बच्चा की देखभाल करने के लिए केबिन मांगा गया था, उसके बदले घर भेजने की कार्रवाई कर दी। नॉर्थ वेस्टर्न रेलवे एम्प्लाइज यूनियन ने अस्पताल में प्रदर्शन कर विरोध दर्ज करवाया तो प्रसूता को बेहतर इलाज के लिए पहले वसुंधरा अस्पताल रैफर किया, फिर गोयल अस्पताल भेज दिया गया।
यूनियन के मंडल सचिव मनोज कुमार परिहार ने बताया कि मथानिया में कार्यरत ट्रेकमैन रूपाराम की पत्नी अंजू के गर्भवती होने पर रेलवे अस्पताल में भर्ती करवाया गया। अंजू ने शुक्रवार को पुत्री को जन्म दिया। रूपाराम ने पत्नी और बेटी की केयर के लिए अस्पताल अधीक्षक से केबिन आवंटित करने के लिए अनुरोध किया, जिसे उन्होंने स्वीकृत भी कर दिया। यूनियन का आरोप है कि चिकित्सक नेहा तिवारी ने इससे खफा होकर प्रसूता को डिस्चॉर्ज दे दिया। रूपाराम का कहना था कि डिलीवरी सिजेरियन से हुई है, ऐसे में जच्चा बच्चा की देखभाल के लिए समय और चिकित्सकीय देखरेख जरूरी होती है। ऑपरेशन के महज 24 घंटे में ही कैसे किसी को घर भेजा जा सकता है। जब यह बात यूनियन पदाधिकारियों को पता चली तो मंडल सचिव मनोज कुमार परिहार व मंडल अध्यक्ष महेन्द्र व्यास के नेतृत्व में कर्मचारी प्रदर्शन कर रेलवे अस्पताल की इस अव्यवस्था के खिलाफ नारेबाजी करने लगे। परिहार ने आरोप लगाया कि डॉक्टरों के हस्तक्षेप के कारण वसुंधरा अस्पताल में एडमिट नहीं किया गया मजबूरन श्रीमती अंजू को गोयल अस्पताल में एडमिट करवाया। लेकिन डॉक्टर नेहा तिवारी की इस प्रकार की कार्यप्रणाली इस बात को दर्शाती है कि उनका व्यवहार रोगियों के साथ में बहुत ही रूढ़ है जो कि श्रीमती नेहा तिवारी को नहीं करना चाहिए, डॉक्टर को हम भगवान का रूप मानते हैं लेकिन यहाँ के डॉक्टरों के तेवर आसमान को छू रहे हैं जिसका हम विरोध भी करते हैं और माँग करते हैं कि नेहा तिवारी सहित जो चिकित्सक लंबे समय से यहाँ पर कार्यरत हैं उनका समय रहते स्थानान्तरण करना चाहिए ताकि रोगियों का सही तरीक़े से इलाज उनको मिल सके ।